डोडा में राशन नहीं, सवालों की भरमार: पूर्व गड़बड़ी की सजा क्यों भुगत रहे ग्रामीण?...

 


मुंगेली - छत्तीसगढ़ सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) गरीबों और जरूरतमंदों की जीवनरेखा मानी जाती है, लेकिन मुंगेली जिले की ग्राम पंचायत डोडा में यही व्यवस्था सवालों के कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही है। दिसंबर माह का राशन आज तक वितरण नहीं होना न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि व्यवस्था की चूक का खामियाजा अंततः आम ग्रामीणों को ही भुगतना पड़ता है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत डोडा की उचित मूल्य दुकान के पूर्व संचालक नेमू साहू (पत्नी – कविता साहू) के विरुद्ध शक्कर लगभग 7–8 क्विंटल, नमक 7–8 क्विंटल तथा चावल करीब 182 क्विंटल की गंभीर रिकवरी दर्ज की गई थी। सवाल यह है कि इतनी बड़ी मात्रा में खाद्यान्न की गड़बड़ी के बावजूद अब तक यह स्पष्ट क्यों नहीं किया गया कि उक्त सामग्री की भरपाई हुई या नहीं? यदि भरपाई हो चुकी है तो उसका प्रमाण सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया, और यदि नहीं हुई है तो जिम्मेदारी तय क्यों नहीं की गई?

सबसे गंभीर स्थिति यह है कि पूर्व संचालक की कथित अनियमितताओं का सीधा असर आज ग्रामवासियों पर पड़ रहा है। दिसंबर माह का राशन अब तक वितरित नहीं किया गया है। वर्तमान सोसायटी संचालक यह कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं कि पूर्व गड़बड़ी के कारण राशन वितरण रोका गया है। यहां बड़ा प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी एक संचालक की गलती की सजा पूरे गांव को दी जा सकती है? क्या शासन प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि दोषी पर कार्रवाई हो, न कि गरीबों का पेट काटा जाए?

ग्रामीणों का कहना है कि सामान्यतः हर माह 13–14 तारीख के आसपास राशन वितरण हो जाता है, लेकिन इस बार मांग करने पर भी दुकान संचालक द्वारा साफ मना कर दिया गया। इससे यह शंका और गहराती है कि क्या उचित मूल्य दुकान संचालक को मनमानी का अधिकार दे दिया गया है? क्या वह जब चाहे दुकान खोले और जब चाहे बंद रखे? यदि शासन द्वारा दुकान खोलने की कोई सीमित तिथि या अवधि तय है, तो उसकी विधिवत सूचना ग्राम पंचायत में मुनादी के माध्यम से क्यों नहीं दी जाती?

यह मामला केवल राशन वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही का भी है। सवाल यह भी है कि खाद्य विभाग और जिला प्रशासन की निगरानी व्यवस्था कहां है? क्या अधिकारियों को तब ही संज्ञान आता है जब मामला आंदोलन या बड़े विवाद का रूप ले लेता है?

ग्रामीणों ने जिला कलेक्टर से मांग की है कि पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर एक सप्ताह के भीतर दिसंबर माह का राशन वितरण सुनिश्चित किया जाए, साथ ही पूर्व संचालक की गड़बड़ी, रिकवरी की स्थिति और वर्तमान संचालक की भूमिका को सार्वजनिक किया जाए। ग्रामीणों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र समाधान नहीं हुआ, तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी शासन और प्रशासन की होगी।

डोडा का यह मामला एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि योजनाएं कागजों पर भले ही मजबूत हों, लेकिन जमीनी स्तर पर यदि जवाबदेही तय न हो, तो सबसे बड़ा नुकसान उन्हीं लोगों को होता है जिनके लिए ये योजनाएं बनाई जाती हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन इस सवाल का जवाब कार्रवाई से देता है या फिर ग्रामीणों को अपने हक के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।


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